पद्मिनी-गोरा-बादल
 
  दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई  कुर्बानी  | जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी ||   रावल रत्न सिंह को छल से कैद किया खिलजी ने   काल गई मित्रों से मिलकर दाग किया खिलजी ने   खिलजी का चित्तोड़ दुर्ग में एक संदेशा आया   जिसको सुनकर शक्ति शौर्य पर फिर अँधियारा छाया   दस दिन के भीतर न पद्मिनी का डोला यदि आया   यदि ना रूप की रानी को तुमने दिल्ली पहुँचाया   तो फिर राणा रत्न सिंह का शीश कटा पाओगे   शाही शर्त ना मानी तो पीछे पछताओगे   दारुन संवाद लहर सा दौड़ गया रण भर में   यह बिजली की तरक छितर से फैल गया अम्बर में   महारानी हिल गयीं शक्ति का सिंघासन डोला था   था सतीत्व मजबूर जुल्म विजयी स्वर में बोला था   रुष्ट हुए बैठे थे सेनापति गोरा रणधीर   जिनसे रण में भय कहती थी खिलजी की शमशीर   अन्य अनेको मेवाड़ी योद्धा रण छोड़ गए थे   रत्न सिंह के संध नीद से नाता तोड़ गए थे   पर रानी ने प्रथम वीर गोरा को खोज निकाला   वन वन भटक रहा था मन में तिरस्कार की ज्वाला   गोरा से पद्मिनी ने खिलजी का पैगाम सुनाया   मगर वीरता का अपमानित ज्वार नही मिट पाया   बोला मैं तो बोहोत तुक्ष हू राजनीती क्या ज...
