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Showing posts from 2011

"चाँद को इतना तो मालूम है तू प्यासी है,

" चाँद को इतना तो मालूम है तू प्यासी है, तू भी अब उस के निकलने का इंतजार ना कर , भूख गर जब्त से बाहर है तो कैसा रोज़ा ? इन गवाहों की ज़रूरत पे मुझे प्यार ना कर ..." Let's view the holy chand of love(करवाचौथ) "नहीं कहा जो कभी, खामखाँ समझती है , जो चाहता हूँ मैं कहना कहाँ समझती है सब तो कहते थे ताल्लुक में इश्क के अक्सर आखँ को आखँ , ज़बाँ को जबाँ समझती है .... "लहर का ख़म निकाला जा रहा है नदी पर बांध डाला जा रहा है कहाँ नीदें मेरी पलकों में ठहरें किसी का ख्वाब पाला जा रहा है ...." गजब की है फरमाइशें इस दिल-ऐ-नादान की , वो होते , हम होते और होंठों पे होंठ होते !!    

sikandar hun mujhe ek roj khalihi jana hai....

najar me sokiya lab pe muhabbt ka tarana hai meri ummeed ki jad me abhi sara jamana hai kai jeet hai di ki dsh pe malum hai mujhko sikandar hun mujhe ek roj khalihi jana hai....                                                              kahata saja  ye hai                                                              neende cheen li dono ki ankho se       ...

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये"

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये" तुम एम् ए फर्स्ट डिविजन हो, मैं हुआ मेट्रिक फेल प्रिये, मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये, तुम फौजी अफसर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूँ, तुम रबड़ी खीर मलाई हो, मैं तो सत्तू सपरेटा हूँ, तुम ए. सी. घर में रहती हो, मैं पेड़ के नीचे लेटा हूँ, तुम नयी मारुती लगती हो, मैं स्कूटर लम्ब्रेटा हूँ, इस कदर अगर हम चुप चुप कर आपस में प्रेम बढ़ाएंगे, तो इक रोज़ तेरे पापा ज़रूर अमरीश पुरी बन जायेंगे, सब हड्डी पसली तोड़ मुझे भिजवा देंगे वो जेल प्रिये, मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये, तुम अरब देश की घोड़ी हो, मैं हूँ गधे की नाल प्रिये, तुम दीवाली का बोनस हो, मैं भूखो की हड़ताल प्रिये, तुम हीरे जड़ी तश्तरी हो, मैं अलमूनियम का थाल प्रिये, तुम चिकन सूप बिरयानी हो, मैं कंकड़ वाली दाल प्रिये, तुम हिरन चौकड़ी भरती हो, मैं हूँ कछुए की चाल प्रिये, तुम चन्दन वन की लकड़ी हो, मैं हूँ बबूल की छाल प्रिये, मैं पके आम सा लटका हूँ, मत मारो मुझे गुलेल प्रिये, मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार न...

स्वतंत्रता दिवस पे आप सभी को हार्दिक बधाई .......

स्व तंत्र ता दिव स पे आप सभी को हार्दिक बधाई .. ..... ... मुझे नहीं लगता  की यहाँ  का हर नागरिक पूर्ण रूप से  स्वतंत्र है  उसे किसी न किसी का  कौफ है.भ्रस्टाचार  इतना बढ़ गया है की लोगो  में सम्मान नाम की कोई  जगह ही नहीं बची.... राजनीत भी इतनी गन्दी  हो गयी है की मेरे पास कोई शब्द ही  नहीं है कहने को ...... क्या कभी किसे ने सोचा है  की वे  देसभक्त कितने महान थे जिन्होंने  भारत माँ के सम्मान के  लिए अपना सब कुछ नेवछावर कर दिया और हम सब को जीवन जीने का एक मार्ग प्रसस्थ किया ...हमें स्वतंत्रता दिलाये  भारत माँ  के सम्मान की लग बचा  के ...... आज हम अपने कर्तब्यौं को भूल चुके है ..हमे अपने सम्मान ,भारत माँ के सम्मान ,सब भूल चुके  है ...हम अपने कर्मो को ताक पर रख दिए है.... यही कारण है की हमारे देश में भ्रस्टाचार का बोल बाला है लोग पैसे को अपना सब कुछ मानते है सम्मान की उनके पास कोई कीमत ही नहीं है,,,क्यूँ  क्यूँ ........क्यूँ???????? एक बात याद रख्खो की यदि हम अपने कर्तब्यो को  पूरा नहीं करेंग...

I'm sad because I miss you and I love you..

I'm not angry because we broke up, I'm sad because I can't let you go.. I'm not angry at you for not loving me, I'm angry with me for still loving you.. I'm not angry that I lost you, ... I'm sad because I once had you.. I'm not angry that I can't have you, I'm sad because I know what I'm missing.. I'm not angry that you've moved on, I'm sad because I can't.. I'm not angry that you won't come back, I'm sad because I keep hoping you will.. I'm not angry because I hate you and don't want to, I'm sad because I miss you and I love you.. Thumbs up if you feel the same :(

लिखू तो क्या लिखू.. हर पन्ने पे तेरी तस्वीर नज़र

तुम्ही पे मरता है ये दिल , अदावत क्यों नहीं करता , कई जन्मे से बंधी है , बगावत क्यों नहीं करता कभी तुम से थी जो वही शिकायत है ज़माने से , मेरी तारीफ करता है मुहब्बत क्यों नहीं करता ? " तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ " कोई कब तक महज़ सोचे कोई कब तक महज़ गाये ? इलाही क्या ये मुमकिन है कि कुछ ऐसा भी हो जाये ? मेरा महताब उसकी रात के आग़ोश में पिघले मैं उसकी नींद में जागूं वो मुझमे घुल के सो जाये ..." जिन की आखों में सपने हैं , होठों पर अंगारें हैं , जिन के जीवन - मृग पूँजी की क्रीडाओं ने मारे हैं , जिन के दिन और रात रखें हैं गिरवीं साहूकारों पर , जिन का लाल रक्त फैला है संसद की दीवारों पर , मैं उन की चुप्पी को अब हुँकार बनाने वाला हूँ . मैं उन की हर सिसकी को...